४४ वर्षीय मसरत आलम बट के जीवन में कई उतार-उतार आये, चढ़ाव इसलिए नही कहा जा सकता क्यूंकि जब जब उन्होंने कश्मीरियों को चढ़ाने का मन बनाया सरकार ने उन्हें अंदर का रास्ता दिखाया। मसरत आलम पत्थर बाज़ी के इतने शौक़ीन थे की इसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा.। यह मैं नहीं कह रहा हूँ, ये बात तो मसरत आलम ने २०१० में अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए इंटरव्यू में खुद कबूली है, मसरत आलम ने बताया की वो बचपन से ही पत्थर फेंक कर विरोध जताया करते थे, इतना ही नहीं पत्थर बाज़ी का जूनून इस हद तक सर पर सवार था की पत्थर का चुनाव भी वो मौसम के अनुसार ही करते थे.। सर्दियों में मसरत आलम कंगरी फेंक कर ( कंगरी का इस्तेमाल जम्मू कश्मीर में लोग सर्दियों में अपने शरीर को गर्म रखने के लिए करते हैं ) विरोध जताया करते थे तो वहीँ गर्मियों में आम पत्थरों से भी काम चला लिया करते थे.। आलम के पत्थर बाज़ी का यह आलम था कि उन पर 2008 से 2010 के बीच पत्थर बाज़ी के आतंक की साज़िश रचने का आरोप लगा था और इसके लिए जम्मू कश्मीर पुलिस ने मसरत पर 10 लाख का इनाम भी रखा था, 2008 के अमरनाथ भूमि आंदोलन में करीब 100 युवक पत्थर बाज़ी के दौरान मरे गए थे मसरत को उस आंदोलन का मास्टर माइंड घोषित किया गया था। मसरत आलम के सितारे तो पहले से ही गर्दिश में चल रहे थे 1990 से लेकर अब तक मसरत करीब 19 साल जेल में ही बिता चुके हैं.। 10 नवंबर 1971 को जन्मे मसरत को पहली बार 2 अक्टूबर 1990 को पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) १९७८ के तहत गिरफ्तार किया गया था.। अक्टूबर 1990 से 2009 तक उनपर 10 बार (पीएसए) लगाया गया था.। कई बार तो ऐसा हुआ कि जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने उनकी गिरफ़्तारी को ख़ारिज कर दिया लेकिन उन्हें रिहा करने के बजाये किसी दुसरे केस में फ़ौरन गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में उन पर पीएसए लगाया गया गया.। मसरत की हर बार गिरफ़्तारी सिर्फ उनकी पत्थर बाज़ी की वजह से नही होती थी, आलम पर देश विरोधी विचारों को सोशल मीडिया पर फ़ैलाने का भी आरोप है और तो और मस्जिदों में एंटी इंडिया की ऑडियो सीडी बांट कर लोगों को भड़काने के आरोप भी उनपर लगते रहें हैं.। आखरी दफे उन्हें 15 अक्टूबर 2014 को गिरफ्तार किया गया था लेकिन जम्मू कश्मीर पुलिस के अनुसार 12 दिनों के अंदर गृह मंत्रालय से उनकी गिरफ़्तारी की मंज़ूरी नहीं ली जा सकी थी जो की पीएसए के तहत ज़रूरी होती है, पुलिस के अनुसार इस दौरान उन पर कुल 27 दुसरे मामले भी दर्ज़ किये गए थे जिनमे 26 में उन्हें ज़मानत मिल गई थी बाकी एक मामले में अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था आखिरकार सात मार्च 2015 को उन्हें रिहा कर दिया गया.। अभी कश्मीर की ठंडी हवा खाए मसरत को महीना भर ही नहीं हुआ था कि भाजपा ने मुफ़्ती सरकार पर दबाव बना कर उनकी घर वापसी का इंतेज़ाम कर दिया , इस बार मामला कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी के स्वागत रैली में पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने को लेकर है अब गिलानी साहेब तो दिल्ली में अपनी ठण्ड की छुट्टियां बिता कर लौटे थे उनको खुश करने के चक्कर में एक बार फिर से आलम ने खुद का बेडा गर्ग कर लिया।
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