एजॆडा सेटिंग थ्योरी:-
अमेरिका में 70 के
दशक में मास कॉमयूनिकेशन थ्योरिस्ट मैक्सवैल मैकौम्ब्स और डोनाल्ड शॉ ने “एजेंडा सेटिंग थ्योरी” थ्योरी लिखी थी। इस थ्योरी में उन्होंने बताया
था कि समाज में बहुत सारी समस्याएं हैं लेकिन मीडिया इन समस्याओं में से कुछ
समस्याओं को चुन कर अपना एजेंडा बना लेता है। मीडिया के ऐसा सफलतापूर्वक करने के
बाद लोगों को लगने लगता है कि वर्तमान में यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है जिसका
सबसे पहले हल निकलना चाहिए। ये थ्योरी राजनीति और मीडिया के संबंधों को दर्शाने के
लिए लिखी गई थी।
भारत में इस समय मीडिया ने जो अहम मुद्दा बनाया हुआ है वो है दलित उत्पीड़न,
मंहगाई, कश्मीर की हालत, नेताओं की बदजुबानी। मीडिया अपना एजेंडा बना रही है और
संसद में हमारे विपक्षी नेता इन मुद्दों को इतनी शिद्दत से अहमीयत दे रहे हैं कि भारत
के विकास का मामला ठंडे बस्ते में चला गया है। आप ही बताइए कि भारत की तुलना अन्य
देशों से करते वक्त किस चीज को पैमाना माना जाता है ? साल भर में भारत की
शिक्षा व्यवस्था में हुए सुधार को या साल भर में कश्मीर के अंदर कितने घुसपैठियों
को घुसने से रोका गया? भारत में बढ़े उत्पादन को या हमारे नेताओं कि
फिसलती जुबान के बढ़ते उत्पादन को? मैं ये नहीं कहता
कि इन मुद्दों को नजरअंदाज कर देना चाहिए लेकिन सिर्फ इन मुद्दों की आढ़ में जरूरी
मुद्दों को भूल जाना कहां की समझदारी है। मीडिया कर्मियों को तो हम नहीं चुनते
लेकिन जिन नेताओं के कंधों पर हमने भारत के विकास भार डाल रखा है वो संसद का पूरा
वक्त अगर इन्हीं मुद्दों पर निकाल देंगे तो ‘विकास’ कब तक इन मुद्दों के जाने का सहारा देखता रहेगा।
ये सब मैं सिर्फ इसलिए बता रहा हूं क्योंकि
ये सारी थ्योरीज़ पढ़ने के बाद मैं भूल जाता हूं। और ऐसा कर के मैं सिर्फ इन्हें
रिवाइज कर रहा हूं। वरना 23 साल की उम्र में हमें क्या पड़ी है समाज की समस्याओं
की। अब अपना करियर देखें हम की ये सब। :P