Saturday, April 25, 2015

"ये झटके थे ज़रा हट के"

"25 अप्रैल 2015"  एक महीने पहले ही सर ने मेल कर डिजर्टेशन जमा करने की आखरी तारीख का एलान कर दिया था,  लेकिन हर बार की तरह इस बार भी हमारे क्लास के वीर पुरुषों ने प्रोजेक्ट जमा करने की आखरी तारीख का फैसला खुद ही ले लिया, हमारे बैच की ये खासियत रही है की हमने अपने टीचर्स को कभी ज़्यादा तकलुफ्फ नहीं दिया.।  खैर मैं तो वैसे भी हमेशा से निकम्मा ही रहा हूँ इसलिए खुद को ज़्यादा तकलीफ न देते हुए सर की दी हुई तारिख को ही आखरी समझा यानि 25 अप्रैल 2015। घर से निकला तो दिमाग में यही चल रहा था कि आज किसी भी हालत में प्रोजेक्ट देना है, पर कॉलेज पहुँच कर जब मैंने प्रोजेक्ट दिखाया, सर ने प्रोजेक्ट में गल्तियों की झड़ी से लगा दी.। इतने में मुझे हल्का झटका महसूस हुआ, पहले तो लगा शायद यह सर की डाँट का असर है, की इतने में एक और झटके ने झटका दिया। इस बार मैंने क्लास में बैठे बच्चों के चेहरे देखे, सबके चहरे की हवाइयां उडी हुई थी वो समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर हुआ क्या ? या शायद समझ गए हों और इस बात का इंतज़ार कर रहे थे की जो उनके मन में चल रहा है वो बस कोई चिल्ला के एक बार कह दे.। हैरान परेशान चेहरे देख कर सर को भी समझ आ गया की वो भोलेनाथ नहीं है और ये कमरा उनके गुस्से से नहीं हिल रहा है, बस फिर क्या था जिस बात का सबको इंतज़ार था हमारे सर के कंठ से वो तीन जादुई शब्द निकल ही गए "भागो भूकम्प है"। हर तरफ अफरा तफरी का माहोल देखा जा सकता था, डूबती हुई नाव में चूहे जैसे अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागते हैं कुछ ऐसा ही नज़ारा कैंपस में भी देखने को मिल रहा था, सब निकल कर अपने अपने डिपार्टमेंट के बाहर सड़क पर आ कर जमा हो गए.। कुछ देर खड़े रहने के बाद जब लोगों को ये यकीन हो गया की अब बला टल गई है, तब शुरू हुआ सिलसिला बयाने-हाले-दिल का। एक हमारे मित्र जो बेहद पतले दुबले हैं उन्होंने ज़ोर से हाथ हिला कर बताया की ATM ऐसे हिल रहा था, जिस तेज़ी हाथ हिलाया भाईसाहब ने उससे भूकंप की तीव्रता को गर मापा जाये तो वो 15 के ऊपर रही होगी। इतनी देर में एक नेता टाइप भाईसाहब अपनी पूरी पल्टन के साथ निकले, उनकी तोंद को देख कर ये कहा जा सकता है की अगर किसी दमदार चीज़ से धक्का दे कर इसे ज़बरदस्ती अंदर घुसा दें, तो इनकी तोंद आज से ज़्यादा तबाही मचाने वाली ताकत पैदा कर सकती है.। बातें भी जनाब अपनी तोंद को ध्यान में रख कर ही कर रहे थे उनका कहना था "ये भला कोई भूकम्प था"...........  15 मिनट बाद जब सारा मामला शांत हुआ तब हम लोग अपने अपने काम पर वापस लौट गए........ काम पर लौटे ज़रूर थे पर काम शुरू भी नहीं कर पाये थे कि अचानक दूसरा झटका लगा और फिर सब बाहर को भागे।  मैंने अपनी जान की परवाह किये बगैर अपने हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट के केबिन में जा कर उनको आवाज़ लगाई "भागिए सर"। सर जी चाय की चुस्की लेने वाले ही थे की मेरी आवाज़ सुन कर मेरे पीछे पीछे हो लिए और उनके पीछे पीछे हो लिए चौबे जी जो सर के लिए चाय लाये थे.। ईमानदारी के सागर में डुबकी लगा कर आये चौबे जी चाय के प्यालों से भरी थाली को उस वक़्त अपने हाथों में उठाये भाग रहे थे जब लोगों ने अपनी कीमती से कीमती चीज़ों को भी बर्बादी के भेंट चढ़ने को छोड़ दिया था, और जैसे ही सर के कदम थमे चौबे जी ने अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए कहा "सर चाय तो पी लीजिये"। 

3 comments:

  1. Mujhe laga maine ye sab miss kar diya but thankyou aapne accha bayaan kiya

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  2. class me tumhari tareef sun ke humne to soch hi liya tha ki aaj ghar jaake tumhare blog ko jaroor dekhungi.......socha aisa kya likh diya tumne ki log tareef karne lage...
    abhi padha to laga accha likha tumne.....writing improve ho rahi tumhari to....:) :)

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